नोएडा: नाराज फ्लैट खरीदारों ने योगी के सामने लगाए नारे, ‘घर नहीं तो वोट नहीं’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज नोएडा में हैं. नोएडा वालों को योगी आदित्यनाथ मेट्रो का तोहफा देने आए लेकिन एक दूसरा मुद्दा भी है जिसकी नोएडा वालों को आस है. बीते काफी लंबे समय से घर की चाबी का इंतजार रहे फ्लैट खरीदारों ने नारा दिया है, ‘’घर नहीं तो NOTA है, घर नहीं तो वोट नहीं’’.
दरअसल, नोएडा में बीते काफी समय से प्रॉपर्टी डीलर्स द्वारा कई बिल्डिंग का निर्माण जारी है. निर्माण होने के बावजूद लाखों खरीदारों को मकान की चाबी नहीं मिली है, जिससे हर कोई परेशान है. आम्रपाली जैसी बड़ी कंपनियों का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.
जिस दौरान योगी आदित्यनाथ नोएडा मेट्रो का उद्घाटन करने पहुंचे तो वहां लोगों ने ‘घर नहीं तो वोट नहीं’ के नारे लगाए. उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार के द्वारा 2014 में घर दिए जाने का वादा किया गया था, जिसे पूरा नहीं किया गया.
स्थानीय निवासियों ने आरोप लगाया कि उनकी मांगों को समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारों ने भी नहीं सुना था और अब बीजेपी के राज में भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला है.
क्या हैं मांगें?
दरअसल, इनकी मांग है कि इनके EMI के दायरे को बढ़ाया जाए और साथ ही जो प्रोजेक्ट पूरे नहीं हुए हैं उन्हें फंड दिया जाए. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों ने उनके साथ न्याय नहीं किया है. इसलिए वह 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में NOTA का बटन दबाएंगे.
गौरतलब है कि गौतमबुद्ध नगर में करीब 2.5 लाख से ज्यादा फ्लैट ऐसे हैं जिनका पजेशन होना बाकी है. इसमें से हजारों खरीदारों को रजिस्ट्री की अड़चन का सामना भी करना पड़ रहा है. हालांकि बीते दिनों आम्रपाली के खरीदारों को राहत मिली. आम्रपाली रुके हुए फ्लैटों पर 8 फरवरी से दोबारा काम शुरू करेगा.
कहानी की बात करें तो ठाकरे के जीवन के उन सब पहलुओं को बारीकी से दिखाया गया, जो उनकी राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित करते थे. कहीं-कहीं उनकी छवि इतनी उदार दिखाई गई कि वे एक मुस्लिम को अपने घर पर नवाज पढ़ने की इजाजत दे देते हैं, वहीं अगले ही शॉट में यह घोषणा करते नजर आते हैं कि वे सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ेंगे. वे कहते हैं कि ""यदि लोगों के नपुंसक होने से अच्छा मेरे लोगों का गुंडा होना है. जब सिस्टम के शोषण के कारण लोगों की रीढ़ पीस गई थी, तब मैंने उन्हें सीधा खड़ा होना सिखाया.''
अपनी बात प्रभावी तरीके से कहने के लिए कैमरा वर्क और लाइटिंग का निर्देशक अभिजीत पानसे ने भरपूर दोहन किया. फिल्म उस बाल ठाकरे की एक गॉड फादर वाली इमेज दिखाती है, जिसके पास अपने ऊपर लगे हर आरोप का जवाब है.
यदि आप अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने वाले जरूरतमंदों के मसीहा वाले सिद्घांत को सिनेमाई तड़के के साथ देखना चाहते हैं तो ठाकरे आपके लिए है. फिल्म में नवाज के अलावा अन्य कोई किरदार उभरकर सामने नहीं आता, लेकिन आपको इंगेज बनाए रखने के लिए नवाज के अलावा किसी और की जरूरत भी नहीं पड़ेगी.
दरअसल, नोएडा में बीते काफी समय से प्रॉपर्टी डीलर्स द्वारा कई बिल्डिंग का निर्माण जारी है. निर्माण होने के बावजूद लाखों खरीदारों को मकान की चाबी नहीं मिली है, जिससे हर कोई परेशान है. आम्रपाली जैसी बड़ी कंपनियों का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.
जिस दौरान योगी आदित्यनाथ नोएडा मेट्रो का उद्घाटन करने पहुंचे तो वहां लोगों ने ‘घर नहीं तो वोट नहीं’ के नारे लगाए. उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार के द्वारा 2014 में घर दिए जाने का वादा किया गया था, जिसे पूरा नहीं किया गया.
स्थानीय निवासियों ने आरोप लगाया कि उनकी मांगों को समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारों ने भी नहीं सुना था और अब बीजेपी के राज में भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला है.
क्या हैं मांगें?
दरअसल, इनकी मांग है कि इनके EMI के दायरे को बढ़ाया जाए और साथ ही जो प्रोजेक्ट पूरे नहीं हुए हैं उन्हें फंड दिया जाए. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों ने उनके साथ न्याय नहीं किया है. इसलिए वह 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में NOTA का बटन दबाएंगे.
गौरतलब है कि गौतमबुद्ध नगर में करीब 2.5 लाख से ज्यादा फ्लैट ऐसे हैं जिनका पजेशन होना बाकी है. इसमें से हजारों खरीदारों को रजिस्ट्री की अड़चन का सामना भी करना पड़ रहा है. हालांकि बीते दिनों आम्रपाली के खरीदारों को राहत मिली. आम्रपाली रुके हुए फ्लैटों पर 8 फरवरी से दोबारा काम शुरू करेगा.
कहानी की बात करें तो ठाकरे के जीवन के उन सब पहलुओं को बारीकी से दिखाया गया, जो उनकी राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित करते थे. कहीं-कहीं उनकी छवि इतनी उदार दिखाई गई कि वे एक मुस्लिम को अपने घर पर नवाज पढ़ने की इजाजत दे देते हैं, वहीं अगले ही शॉट में यह घोषणा करते नजर आते हैं कि वे सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ेंगे. वे कहते हैं कि ""यदि लोगों के नपुंसक होने से अच्छा मेरे लोगों का गुंडा होना है. जब सिस्टम के शोषण के कारण लोगों की रीढ़ पीस गई थी, तब मैंने उन्हें सीधा खड़ा होना सिखाया.''
अपनी बात प्रभावी तरीके से कहने के लिए कैमरा वर्क और लाइटिंग का निर्देशक अभिजीत पानसे ने भरपूर दोहन किया. फिल्म उस बाल ठाकरे की एक गॉड फादर वाली इमेज दिखाती है, जिसके पास अपने ऊपर लगे हर आरोप का जवाब है.
यदि आप अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने वाले जरूरतमंदों के मसीहा वाले सिद्घांत को सिनेमाई तड़के के साथ देखना चाहते हैं तो ठाकरे आपके लिए है. फिल्म में नवाज के अलावा अन्य कोई किरदार उभरकर सामने नहीं आता, लेकिन आपको इंगेज बनाए रखने के लिए नवाज के अलावा किसी और की जरूरत भी नहीं पड़ेगी.
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